Coronation of Bhoja King of Kannauj - INDJOBGROUP

Sunday, September 15, 2019

Coronation of Bhoja King of Kannauj

Coronation of Bhoja King of Kannauj

Kannauj के भोज राजा का राज्याभिषेक
प्रतिहार राजवंश के महानतम शासक मिहिर भोज थे। उन्होंने 836 में कन्नौज (Kannauj) की खोज की और लगभग एक शताब्दी तक प्रतिहारों की राजधानी बनाया। उन्होंने भोजपाल (वर्तमान भोपाल) शहर का निर्माण किया। राजा भोज और उनके अन्य सहवर्ती गुजर राजाओं को पश्चिम की ओर से अरब जनों के अनेक आक्रमणों का सामना करना पड़ा और पराजित होना पड़ा।

वर्ष 915 - 918 ए.डी. के बीच  Kannauj पर राष्ट्रकूट राजा ने आक्रमण किया। जिसने शहर को विरान बना दिया और प्रतिहार साम्राज्य की जड़ें कमजोर दी। वर्ष 1018 में  Kannauj ने राज्यपाल प्रतिहार का शासन देखा, जिसे गजनी के महमूद ने लूटा। पूरा साम्राज्य स्वतंत्रता राजपूत राज्यों में टूट गया।


राजा भोज मुंज के छोटे भाई सिंधुराज का पुत्र था। रोहक इसका प्रधान मंत्री और भुवनपाल मंत्री था। कुलचंद्र, साढ़ तथा तरादित्य इसके सेनापति थे जिनकी सहायता से भोज ने राज्यसंचालन सुचारु रूप से किया। अपने चाचा मुंज की ही भाँति यह भी पश्चिमी भारत में एक साम्राज्य स्थापित करना चाहता था और इस इच्छा की पूर्ति के लिये इसे अपने पड़ोसी राज्यों से हर दिशा में युद्ध करना पड़ा। मुंज की मृत्यु शोकजनक परिस्थिति में हो जाने से परमार बहुत ही उत्तेजित थे और इसीलिये भोज चालुक्यों से बदला लेन के विचार से दक्षिण की ओर सेना लेकर चढ़ाई करने को प्रेरित हुआ। उसने दाहल के कलबुरी गांगेयदेव तथा तंजौर (तंच्यावूर) के राजेंद्रचोल से संधि की ओर साथ ही साथ दक्षिण पर आक्रमण भी कर दिया, परंतु तत्कालीन राजा चालुक्य जयसिंह द्वितीय ने बहादुरी से सामना किया और अपना राज्य बचा लिया। सन् 1044 ई. के कुछ समय बाद जयसिंह के पुत्र सोमेश्वर द्वितीय ने परमारों से फिर शत्रुता कर ली और मालव राज्य पर आक्रमण कर भोज को भागने के लिये बाध्य कर दिय। धारानगरी पर अधिकार कर लेने के बाद उसने आग लगा दी, परंतु कुछ ही दिनों बाद सोमेश्वर ने मालव छोड़ दिया और Kannauj भोज ने राजधानी में लोटकर फिर सत्ताधिकार प्राप्त कर लिया। सन् 1018 ई. के कुछ ही पहले भोज ने इंद्ररथ नामक एक व्यक्ति को, जो संभवत: कलिंग के गांग राजाओं का सामंत था, हराया था
जयसिंह द्वितीय तथा इंद्ररथ के साथ युद्ध समाप्त कर लेने पर Kannauj भोज ने अपनी सेना भारत की पश्चिमी सीमा से लगे हुए देशों की ओर बढ़ाई और पहले लाट नामक राज्य पर, जिसका विस्तार दक्षिण में बंबई राज्य के अंतर्गत सूरत तक था, आक्रमण कर दिया। वहाँ के राजा चालुक्य कीर्तिराज ने आत्मसमर्पण कर दिया और Kannauj भोज ने कुछ समय तक उसपर अधिकार रखा। इसके बाद लगभग सन् 1020 ई. में भोज ने लाट के दक्षिण में स्थित तथा थाना जिले से लेकर मालागार समुद्रतट तक विस्तृत कोंकण पर आक्रमण किया और शिलाहारों के अरिकेशरी नामक राजा को हराया। कोंकण को परमारों के राज्य में मिला लिया गया और उनके सामंतों के रूप में शिलाहारों ने यहाँ कुछ समय तक राज्य किया। सन् 1008 ई. में जब महमूद गज़नबी ने पंजाबे शाही नामक राज्य पर आक्रमण किया, Kannauj भोज ने भारत के अन्य राज्यों के साथ अपनी सेना भी आक्रमणकारी का विरोध करने तथा शाही आनंदपाल की सहायता करने के हेतु भेजी परंतु हिंदू राजाओं के इस मेल का कोई फल न निकला और इस अवसर पर उनकी हार हो गई। सन् 1043 ई. में भोज ने अपने भृतिभोगी सिपाहियों को पंजाब के मुसलमानों के विरुद्ध लड़ने के लिए दिल्ली के राजा के पास भेजा। उस समय पंजाब गज़नी साम्राज्य का ही एक भाग था और महमूद के वंशज ही वहाँ राज्य कर रहे थे। दिल्ली के राजा को भारत के अन्य भागों की सहायता मिली और उसने पंजाब की ओर कूच करके मुसलमानों को हराया और कुछ दिनों तक उस देश के कुछ भाग पर अधिकार रखा परंतु अंत में गज़नी के राजा ने उसे हराकर खोया हुआ भाग पुन: अपने साम्राज्य में मिला लिया।


भोज ने एक बार दाहल के कलचुरी गांगेयदेव के विरुद्ध भी, जिसने दक्षिण पर आक्रमण करने के समय उसका साथ दिया, था, चढ़ाई कर दी। गांगेयदेव हार गया परंतु उसे आत्मसमर्पण नहीं करना पड़ा। सन् 1055 ई. के कुछ ही पहले गांगेय के पुत्र कर्ण ने गुजरात के चौलुक्य भीम प्रथम के साथ एक संधि कर ली और मालव पर पूर्व तथा पश्चिम की ओर से आक्रमण कर दिया। भोज अपना राज्य बचाने का प्रबंध कर ही रहा था कि बीमारी से उसकी आकस्मिक मृत्यु हो गई और राज्य सुगमता से आक्रमणकारियों के अधिकार में चला गया।
उत्तर में भोज ने चंदेलों के देश पर भी आक्रमण किया था जहाँ विद्याधर नामक राजा राज्य करता था। परंतु उससे कोई लाभ न हुआ। भोज के ग्वालियर पर विजय प्राप्त करने के प्रयत्न का भी कोई अच्छा फल न हुआ क्योंकि वहाँ के राजा कच्छपघाट कीर्तिराज ने उसके आक्रमण का डटकर सामना किया। ऐसा विश्वास किया जाता है कि भोज ने कुछ समय के लिए कन्नौज पर भी विजय पा ली थी जो उस समय प्रतिहारों के पतन के बादवाले परिवर्तन काल में था।
Kannauj भोज ने राजस्थान में शाकंभरी के चाहमनों के विरुद्ध भी युद्ध की घोषणा की और तत्कालीन राजा चाहमान वीर्यराम को हराया। इसके बाद उसने चाहमानों के ही कुल के अनहिल द्वारा शालित नदुल नामक राज्य को जीतने की धमकी दी, परंतु युद्ध में परमार हार गए और उनके प्रधान सेनापति साढ़ को जीवन से हाथ धोना पड़ा।
Kannauj भोज ने गुजरात के चौलुक्यों से भी, जिन्होंने अपनी राजधानी अनहिलपट्टण में बनाई थी, बहुत दिनों तक युद्ध किया। चौलुक्य मूलराज प्रथम के पुत्र चंमुदराज को वाराणसी जाते समय मालवा में भोज के हाँथों अपमानित होना पड़ा था। उसके पुत्र एवं उत्तराधिकारी बल्लभराज को इसपर बड़ा क्रोध आया और उसने इस अपमान का बदला लेने की सोची। उसने भोज के विरुद्ध एक बड़ी सेना तैयार की और भोज पर आक्रमण कर दिया, परंतु दुर्भाग्यवश रास्ते में ही चेचक से उसकी मृत्यु हो गई। इसके बाद वल्लभराज के छोटे भाई दुर्लभराज ने सत्ता की बागडोर अपन हाथों में ली। कुछ समय बाद भाज ने उसे भी युद्ध में हराया। दुर्लभराज के उत्तराधिकारी भीम के राज्यकाल में भोज ने अपने सेनापति कुलचंद्र को गुजरात के विरुद्ध युद्ध करने के लिए भेजा। कुलचंद्र ने पूरे प्रदेश पर विजय प्राप्त की तथा उसकी राजधानी अनहिलपट्टण को लूटा। भीम ने एक बार आबू पर आक्रमण कर उसके राजा परमार ढंडु को हराया था, जब उसे भागकर चित्रकूट में भोज की शरण लेनी पड़ी थी। जैसा ऊपर बताया जा चुका है, सन् 1055 ई. के थोड़े ही पहले भीम ने कलचुरी कर्ण से संधि करके मालवा पर आक्रमण कर दिया था परंतु भोज के रहते वे उस प्रदेश पर अधिकार न पा सके।

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